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उदातै॑र्जिहते बृ॒हद्द्वारो॑ दे॒वीर्हि॑र॒ण्ययी॑: । पव॑मानेन॒ सुष्टु॑ताः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

ud ātair jihate bṛhad dvāro devīr hiraṇyayīḥ | pavamānena suṣṭutāḥ ||

पद पाठ

उत् । आतैः॑ । जि॒ह॒ते॒ । बृ॒हत् । द्वारः॑ । दे॒वीः । हि॒र॒ण्ययीः॑ । पव॑मानेन । सुऽस्तु॑ताः ॥ ९.५.५

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:5» मन्त्र:5 | अष्टक:6» अध्याय:7» वर्ग:24» मन्त्र:5 | मण्डल:9» अनुवाक:1» मन्त्र:5


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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (देवीः हिरण्ययीः) प्रकृति की दिव्य शक्तियें, जो धनादि ऐश्वर्य्यों के देनेवाली हैं, वे (पवमानेन) पूज्य परमात्मा के साथ (सुष्टुताः) वर्णन की हुई (बृहद्द्वारः) ऐश्वर्यों का मूल होती हैं और (आतैः) उनके विज्ञान से विज्ञानी लोग दिशाओं द्वारा (उद् जिहते) सर्वत्र फैल जाते हैं ॥५॥
भावार्थभाषाः - जो लोग प्रकृति-पुरुष की विद्या को जानते हैं कि परमात्मा निमित्त कारण और प्रकृति संसार का उपादान कारण है अर्थात् प्रकृति में ही नाना प्रकार की विद्याओं के बीज भरे पड़े हैं, उसके तत्त्वज्ञान से वे लोग सब दिशाओं में फैल सकते हैं। तात्पर्य यह है कि अभ्युदय तथा निःश्रेयस दोनों के विज्ञान से होते हैं, एक के विज्ञान से नहीं ॥५॥२४॥
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आर्यमुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (देवीः, हिरण्ययीः) प्रकृतेर्दिव्यशक्तयः धनाद्यैश्वर्यदात्र्यः (पवमानेन) पूजार्हपरमात्मना सह (सुष्टुताः) उपवर्णिताः (बृहद्द्वारः) ऐश्वर्यमूलानि भवन्ति (आतैः) तद्विज्ञानेन विज्ञानिनः दिग्भिः (उद्, जिहते) सर्वत्र व्याप्नुवन्ति ॥५॥